नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि दुर्गा पूजा या नवरात्री हिन्दू समुदाय का एक गहना महत्व रखने वाला उत्सव है। इस अवसर पर माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की आराधना और पूजा की जाती है। ‘नवरात्री’ शब्द से ही स्पष्ट है कि इसमें ‘नौ रातें’ शामिल हैं, जिनमें हर रात को देवी के एक-एक विशेष रूप की पूजा होती है। यह पर्व भारतीय उपमहाद्वीप में विशेष रूप से भारत और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के बारे में विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों में विभिन्न मान्यताएँ और कथाएँ हैं। नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
नवरात्री का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। जैसा कि आपने उल्लेख किया, हिंदू कैलेंडर में वर्ष में चार नवरात्री होती हैं – दो मुख्य और दो गुप्त।
- चैत्र नवरात्री: यह नवरात्री वसंत ऋतु में चैत्र मास की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। इसे वसंत नवरात्री भी कहा जाता है और इसका महत्व हिंदू नववर्ष के साथ जुड़ा हुआ है।
- आश्विन नवरात्री: यह नवरात्री शरद ऋतु में आश्विन मास की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। इसे शारदीय नवरात्री भी कहा जाता है और इसे पूरे देश में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
- गुप्त नवरात्री – माघ नवरात्री: यह नवरात्री माघ मास में मनाई जाती है। इसे माघ गुप्त नवरात्री भी कहते हैं और यह विशेष रूप से तंत्रिक साधना के लिए समर्पित है।
- गुप्त नवरात्री – आषाढ़ नवरात्री: यह नवरात्री आषाढ़ मास में मनाई जाती है। इसे आषाढ़ गुप्त नवरात्री भी कहते हैं और इस पर्व का महत्व विशेष रूप से तंत्र-मंत्र की साधना में है।
गुप्त नवरात्रियाँ प्रमुखत: साधक और योगियों द्वारा मनाई जाती हैं, जो तंत्र-मंत्र की साधना में रुचि रखते हैं। यह नवरात्रियाँ सामान्य जनता के लिए इतनी प्रसिद्ध नहीं हैं जितनी कि चैत्र और आश्विन नवरात्री हैं।
नवरात्रि भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण त्योहार है, जो माँ दुर्गा की उपासना में नौ दिनों तक मनाया जाता है। आपने जो जानकारी दी है वह सही है और आपके जानकारी के अनुसार, भारत में साल में पाँच प्रकार की नवरात्रि मनाई जाती है। नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
- शारदीय नवरात्री: इसे सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। यह आश्वयुज मास में मनाई जाती है और इसका समाप्त दशहरा पर होता है।
- चैत्र नवरात्री: यह चैत्र मास में मनाई जाती है और इसके समाप्त होने पर रामनवमी मनाई जाती है।
- माघ नवरात्री: इसे गुप्त नवरात्री भी कहते हैं। यह माघ मास में मनाई जाती है और इसे कुछ ही स्थानों पर महत्व दिया जाता है।
- अषाढ़ नवरात्री: इसे भी गुप्त नवरात्री कहते हैं और यह अषाढ़ मास में मनाई जाती है।
- पौष नवरात्री: यह पौष मास में मनाई जाती है।
हालांकि, शारदीय नवरात्री को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है और इस समय माँ दुर्गा की मूर्तियों की पूजा की जाती है और उनकी उपासना में विविध गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
नवरात्री नवदुर्गा पूजा महत्व (Navratri Nav Durga Puja Significance)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा और झारखंड में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
- महिषासुर वध: यह पूजा माँ दुर्गा की महाशक्ति की प्रशंसा में की जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव का संहार किया। महिषासुर के अद्भुत शक्तियों के चलते देवता भी उससे परेशान थे। इसलिए, देवताओं ने माँ दुर्गा की उपासना की, जिन्होंने इस दानव का वध कर देवताओं को उनकी राज्य संप्रदाय से मुक्ति दिलाई। इसलिए, दुर्गा पूजा को अच्छाई पर बुराई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
- माता का मायका आना: एक और मान्यता इसे पारिवारिक त्योहार के रूप में देखती है, जहां विश्वास किया जाता है कि दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा अपने मायके आती हैं और उन्हें उनके पिता, पहाड़राज हिमालय, और माँ मेनका के घर में स्वागत किया जाता है। इस समय, उनका घर उत्सव के रंग में रंग जाता है और प्रत्येक दिन को खास तरह से मनाया जाता है।
इस तरह, दुर्गा पूजा का महत्व अच्छाई की विजय, पारिवारिक मूल्यों और मातृशक्ति की प्रशंसा में है। यह त्योहार हमें यह दर्शाता है कि जब भी बुराई की शक्तियां बढ़ जाती हैं, तो अच्छाई की शक्तियां भी उसे समाप्त करने के लिए प्रकट होती हैं।
नवदुर्गा का नाम नवरात्री के नौ अवतार (Navratri Nav Durga Roop Story)
नवरात्री के नौ दिवस माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों को ‘नवदुर्गा’ कहा जाता है। यहाँ प्रत्येक दिन के अनुसार माँ दुर्गा के नौ अवतारों की चर्चा है:
- शैलपुत्री (पहला दिन): इस रूप में माँ दुर्गा हिमालय पर्वत और मेनका की पुत्री के रूप में हैं। इनके पास वृषभ है और वे त्रिशूल और कमल का धारण करती हैं।
- ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन): इस अवतार में माँ दुर्गा की तपस्या और त्याग की भावना को दर्शाया गया है।
- चंद्रघंटा (तीसरा दिन): माँ के माथे पर चाँद की तरह घंटी है, जिससे इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। यह रूप शांति और उपशाम का प्रतीक है।
- कूष्माण्डा (चौथा दिन): इस अवतार में माँ दुर्गा सृष्टि की रचना की महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- स्कंदमाता (पांचवा दिन): इस रूप में, माँ दुर्गा अपने पुत्र स्कंद या कार्तिकेय के साथ प्रस्तुत हैं।
- कात्यायनी (छठा दिन): माँ दुर्गा इस रूप में युवा कन्या के रूप में हैं और उन्होंने महिषासुर का वध किया।
- कालरात्रि (सातवा दिन): इस अवतार में, माँ दुर्गा सबसे डरावने रूप में हैं और वे बुराई और अधर्म का नाश करती हैं।
- महागौरी (आठवा दिन): इस अवतार में, माँ दुर्गा अधिक सुंदर और चमकदार रूप में हैं, जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है।
- सिद्धिदात्री (नौवा दिन): इस रूप में माँ दुर्गा सभी आवश्यक सिद्धियों और नौ दुर्गा स्वरूपों का संचारिणी हैं।
नवरात्री 2023-24, नव दुर्गा पर्व महत्व, कथा पूजन इस तरह, प्रत्येक दिन नवरात्री में माँ दुर्गा के एक विशेष अवतार की पूजा और स्तुति की जाती है, जिससे साधकों को जीवन में सहायता, शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नवरात्री में माँ दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा विधि
देवी पूजा में विशेष महत्वपूर्णता और श्रद्धा रखना अत्यंत आवश्यक है। देवी शक्ति का प्रतीक हैं और इसके चरण में असीम ऊर्जा समाहित है। यही कारण है कि देवी की पूजा में किसी भी प्रकार की अशुद्धि या अवगुण न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।
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जब भी किसी पंडाल में या मंदिर में देवी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है, तो वहाँ पर पंडित या ब्राह्मण विशेष रूप से देवी की पूजा, आरती, हवन, चौंकी आदि की विधियों को अनुसरण करते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि पूजा में कोई भी गलती न हो। नवरात्री 2023-24, नव दुर्गा पर्व महत्व, कथा पूजन
घर में भी, जब देवी की पूजा की जाती है, परिवार के सदस्य भी विशेष ध्यान रखते हैं कि पूजा की सारी रीति-रिवाज ठीक से पालन की जाए। पूजा के समय, सभी परिवार के सदस्य शुद्ध और पवित्र रहते हैं।
इसके पीछे यह विश्वास है कि अगर पूजा में कोई भी गलती हो गई तो देवी की असंतुष्टि हो सकती है। इसलिए, चाहे वह घर हो या मंदिर, देवी की पूजा के समय सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ सावधानी से पूजा गतिविधियों का पालन किया जाता है।
नवरात्री का पहला दिन – नवरात्री घट स्थापना तथा कलश पूजन (Navratri Ghatasthapana and Kalash sthapana vidhi):
नवरात्री का पहला दिन सच में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसे घटस्थापना या कलश स्थापना के नाम से जाना जाता है। इस दिन नवदुर्गा की पूजा की शुरुआत होती है और यह पूजा अगले नौ दिनों तक चलती है।
घटस्थापना का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह स्थापना अमावस्या, सूर्यास्त के समय या रात्रि को नहीं की जाती है। प्रतिपदा तिथि का पहला पहर सबसे अधिक शुभ माना जाता है घटस्थापना के लिए।
यदि किसी कारण से जैसे की आपदा, बीमारी या किसी अन्य अवरोध के चलते घटस्थापना का यह मुख्य समय छूट जाए तो अभिजित मुहूर्त, जो दोपहर का समय होता है, उस में भी घट स्थापित किया जा सकता है।
नक्षत्र चित्रा और वैधृति योग में घटस्थापना से बचना चाहिए क्योंकि इस समय में किये गए धार्मिक कार्यों का श्रेष्ठ फल नहीं मिलता है। फिर भी, अगर आवश्यकता हो तो विचार किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पंडित या ज्योतिषी की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
अंत में, हम कह सकते हैं कि घटस्थापना एक विशेष विधान से की जाती है और इसकी शुद्धता और समय का पालन बहुत महत्वपूर्ण है।
घटस्थापना के लिए जरुरी वस्तुएं
यदि आपने एक सूची बनाई है जिसमें घटस्थापना और कलश पूजन के लिए जरूरी सामग्री का उल्लेख है, तो यह सूची कुछ इस तरह से लिखी जा सकती है: नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
- एक खुला हुआ, चौड़ा मिट्टी का गमला या अन्य बर्तन।
- धान्य बोने के लिए शुद्ध मिट्टी।
- कलश स्थापना के लिए ताम्बे या पीतल का लौटा।
- गंगा जल अथवा किसी अन्य स्त्रोत से प्राप्त शुद्ध पानी।
- मोली (लाल-सफेद धागा)।
- इत्र।
- सुपारी।
- सिक्के।
- पाँच पत्ते, या तो केले के या अशोक वृक्ष के।
- कलश को ढकने के लिए ढक्कन।
- अक्षत (चावल पर हल्दी लगाकर तैयार किया जाता है)।
- नारियल।
- नारियल को लपेटने के लिए लाल रंग का कपड़ा।
- पूजा के लिए ताजा फूल या माला।
- दूर्वा (एक प्रकार की हरी घास)।
इस सूची में उल्लिखित सामग्री का उपयोग घटस्थापना और कलश पूजन के लिए आमतौर पर किया जाता है।
कलश पूजा विधि (Kalash Puja vidhi):-नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
नवरात्रि के पहले दिन लोग स्नान, ध्यान और पूजा की पूरी तैयारी करते हैं।
सबसे पहली बात पूजा की शुरुआत में गणेश जी का स्मरण किया जाता है, क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता माना जाता है। माता के नाम पर अखंड ज्योत जलाना भी इसका हिस्सा है।
फिर आता है कलश स्थापना का समय। इसके लिए सबसे पहले एक बड़े आकार का मिट्टी का बर्तन लिया जाता है जिसमें कलश को रखा जाए। उस बर्तन में तीन परत मिट्टी की डाली जाती है, और हर परत के बाद बीज बोए जाते हैं। मिट्टी की परतों में पानी भी डाला जाता है ताकि मिट्टी स्थिर रहे।
तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें पवित्र जल, सुपारी, इत्र, अक्षत, दूर्वा और कुछ सिक्के भी डाले जाते हैं। फिर इस लोटे पर अशोक या आम के पाँच पत्ते रखकर उस पर लाल वस्त्र में लपेटा हुआ नारियल रखा जाता है।
इस प्रकार स्थापित कलश को मिट्टी के बर्तन के मध्य रखा जाता है।
घट स्थापना विधान बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें कई धार्मिक और पारंपरिक विधियां शामिल हैं। यह सभी विधियां ध्यानपूर्वक और सावधानी से पूरी की जाती है।
नवरात्रि के इस अवसर पर अनेक लोग व्रत भी रखते हैं, कुछ निराहार रहते हैं। इस अवसर पर धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है। अष्टमी और नवमी इन नौ दिनों के सबसे महत्वपूर्ण दिन माने जाते हैं। इन दिनों पूजा का विशेष महत्व होता है और लोग इसे बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं।
अष्टमी नवमी के पूजन विधि एवम महत्त्व (Ashtami Navami Puja Vidhi and Mahatv) :
नवरात्रि के अष्टमी और नवमी के दिन विशेष महत्व होता है। अष्टमी को महाअष्टमी के रूप में भी जाना जाता है और इस दिन विभिन्न प्रकार की रस्में और रीतियां पाली जाती हैं।
अलग-अलग क्षेत्रों में इस दिन कन्या पूजन का आयोजन होता है जहां परिवार के लोग छोटी-छोटी कन्याओं को अपने घर बुला कर उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रसाद जैसे पूड़ी, हलवा, खीर आदि खिलाते हैं। उन्हें मां दुर्गा की रूप में पूजा जाता है और उन्हें विभिन्न उपहार भी दिए जाते हैं।
बंगाल में अष्टमी का विशेष महत्व है और इसे दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। अष्टमी के दिन हवन की जाती है जिसे संपन्न करके नवरात्रि के व्रत का पारण किया जाता है। नवरात्री 2023-24, नव दुर्गा पर्व महत्व, कथा पूजन
नवमी के दिन विभिन्न पंडालों और मंदिरों में भंडारे का आयोजन होता है जहां सभी भक्तों को भोजन कराया जाता है। नवमी के दिन ही दुर्गा मूर्ति का विसर्जन भी किया जाता है, जिससे दुर्गा पूजा का समापन होता है।
इस प्रकार, अष्टमी और नवमी के दिन लोग देवी दुर्गा की पूजा और व्रत में विशेष ध्यान और श्रद्धा से लिप्त होते हैं और इस अवसर पर भक्ति, आस्था और धार्मिकता की भावना बढ़ जाती है।
नवरात्रि के अष्टमी और नवमी के दिन विशेष महत्व होता है। अष्टमी को महाअष्टमी के रूप में भी जाना जाता है और इस दिन विभिन्न प्रकार की रस्में और रीतियां पाली जाती हैं।
अलग-अलग क्षेत्रों में इस दिन कन्या पूजन का आयोजन होता है जहां परिवार के लोग छोटी-छोटी कन्याओं को अपने घर बुला कर उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रसाद जैसे पूड़ी, हलवा, खीर आदि खिलाते हैं। उन्हें मां दुर्गा की रूप में पूजा जाता है और उन्हें विभिन्न उपहार भी दिए जाते हैं।
बंगाल में अष्टमी का विशेष महत्व है और इसे दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। अष्टमी के दिन हवन की जाती है जिसे संपन्न करके नवरात्रि के व्रत का पारण किया जाता है।
नवमी के दिन विभिन्न पंडालों और मंदिरों में भंडारे का आयोजन होता है जहां सभी भक्तों को भोजन कराया जाता है। नवमी के दिन ही दुर्गा मूर्ति का विसर्जन भी किया जाता है, जिससे दुर्गा पूजा का समापन होता है।
इस प्रकार, अष्टमी और नवमी के दिन लोग देवी दुर्गा की पूजा और व्रत में विशेष ध्यान और श्रद्धा से लिप्त होते हैं और इस अवसर पर भक्ति, आस्था और धार्मिकता की भावना बढ़ जाती है।
देश के विभिन्न क्षेत्र में नवरात्री का महत्व –
नवरात्रि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे पूरे देश में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि
बंगाल में इस पर्व की महत्वपूर्णता अन्य स्थलों से भिन्न है। यहां दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। विशाल पंडाल लगते हैं और उनमें देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना होती है। यह पूजा सप्तमी से नवमी तक होती है, और नवमी के दिन पुष्पांजलि और कुमकुम की होली के साथ यह पूजा समाप्त होती है।
पंजाब में नवरात्रा व्रत के रूप में अधिक प्रसिद्ध है, जहां लोग सात दिन तक व्रत रखते हैं और अष्टमी के दिन उसे तोड़ते हैं। यहां पर कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। उत्तर भारत में इस समय रामलीला की भी प्रस्तुतियाँ होती हैं, जो नवरात्रि के नौ दिनों तक चलती हैं।
गुजरात और मुंबई में गरबा और डांडिया रास इस पर्व की प्रमुख विशेषता हैं। यहां पर रात-रात भर डांडिया और गरबा के नृत्य किए जाते हैं।
महाराष्ट्र में घटस्थापना का अपना अद्वितीय महत्व है और इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
तमिलनाडु में गोलू या कोलू के रूप में विभिन्न प्रतिमा और देवी के पैरों के निशान को घरों में स्थापित किया जाता है। तमिलनाडु और केरल में अष्टमी के दिन सरस्वती पूजन और अयुध पूजा की भी परंपरा है।
कर्नाटक में दशहरा पर्व का खास महत्व है, खासकर मैसूर दशहरा, जो भारतीय त्यौहारों में एक प्रमुख स्थान रखता है।
तेलंगाना में नवरात्री को बठुकम्मा पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पूजाएं और आयोजन होते हैं।
हर प्रदेश में नवरात्री को मनाने का अपना अद्वितीय तरीका है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता में अद्वितीयता को प्रकट करता है।
नवरात्री महत्त्व पूजन सामग्री तथा विधि जैसे कि कहा जाता है भारत मे अनेकता मे एकता देखने के लिए मिलती है. उसी प्रकार देवी की पूजा जिस किसी भी रूप मे हो, चाहे किसी भी तरीके से हो, सबका उद्देश्य एक ही रहता है. सबकी कामना यही रहती है, कि देवी को प्रसन्न करके मनवांछित वरदान कैसे पाया जाए या अपने कष्टो को किस तरह दूर किया जाए.