क्या है डोल ग्यारस वामन 2023 dol gyaras Vaman jayanti mahatva in Hindi

क्या है डोल ग्यारस वामन-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको डोल ग्यारस वामन के बारे में बताने जा रहा हूँ हिन्दू उपवास में ग्यारस या एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व होता हैं. कहते हैं जीवन का अंत ही सबसे कठिन होता हैं. उसे सुधारने हेतु एकदशी का व्रत किया जाता हैं. उन्ही में से एक हैं डोल ग्यारस.

डोल ग्यारस या परिवर्तनी एकादशी  या वामन जयंती 2023 में कब मनाई जाती हैं

भादो शुक्ल पक्ष के ग्यारहवे दिन यह ग्यारस मनाई जाती हैं. इस वर्ष 2023 में डोल ग्यारस परिवर्तनी एकादशी वामन जयंती 17 सितंबर को मनाई जायेगी. इस दिन बड़े बड़े जश्न मनाये जाते हैं. झाकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं. रात्रि के समय सभी पुरे परिवार के साथ रतजगा कर डोल देखने शहरो में जाते हैं.

डोल ग्यारस महत्व

इसका महत्व श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था. एकादशी व्रत सबसे महान व्रत में आता हैं, उसमे भी इस ग्यारस को बड़ी ग्यारस में गिना जाता हैं.

इसके प्रभाव से सभी दुखो का नाश होता है, समस्त पापो का नाश करने वाली इस ग्यारस को परिवर्तनी ग्यारस, वामन ग्यारस एवं जयंती एकादशी भी कहा जाता हैं.

इसकी कथा सुनने से ही सभी का उद्धार हो जाता हैं.

डोल ग्यारस की पूजा एवम व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ के तुल्य माना जाता हैं.

इस दिन भगवान विष्णु एवं बाल कृष्ण की पूजा की जाती हैं, जिनके प्रभाव से सभी व्रतो का पुण्य मनुष्य को मिलता हैं.

इस दिन विष्णु के अवतार वामन देव की पूजा की जाती हैं उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल मिलता हैं.

डोल ग्यारस कथा इसी दिन वामन जयंती मनाई जाती हैं

क्या है डोल ग्यारस वामन-इसे परिवर्तनी एवं वामन ग्यारस क्यूँ कहा जाता हैं ?

यह प्रश्न युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से किया था, जिसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा – इस दिन भगवान विष्णु अपनी शैया पर सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तनी ग्यारस कहा जाता हैं.

इसी दिन दानव बलि जो कि एक धर्म परायण दैत्य राजा था, जिसने तीनो लोको में अपना स्वामित्व स्थापित किया था. उससे भगवान विष्णु ने वामन रूप में उसका सर्वस्व दान में ले लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दिया था. इस प्रकार इसे वामन जयंती कहा जाता हैं

डोल ग्यारस के उपलक्ष मे एक और कथा कही जाती हैं :

इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा. इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नये कपड़े पहनायें एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यो में सम्मिलित किया. इस प्रकार इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता हैं.

इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था. उसी प्रकार आज तक इस दिन मेले एवम झांकियों का आयोजन किया जाता हैं. माता यशोदा की गोद भरी जाती हैं. कृष्ण भगवान को डोले में बैठाकर झाँकियाँ सजाई जाती हैं. कई स्थानो पर मेले एवम नाट्य नाटिका का आयोजन भी किया जाता हैं.

डोल ग्यारस पूजा विधि

क्या है डोल ग्यारस वामन-इस दिन सभी अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा एवम व्रत रखते हैं. ग्यारस के व्रत का महत्व हिन्दू धर्म में सबसे अधिक होता हैं और इसमें भी चौमासे में आने वाली ग्यारस को अधिक महत्व दिया जाता हैं.

डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं.

इस दिन चावल, दही एवम चांदी का दान उत्तम माना जाता हैं.

रतजगा कर पुरे जश्न के साथ यह व्रत पूरा किया जाता हैं.

इसकी कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य को पापो से मुक्ति मिलती हैं.

धार्मिक मनुष्य को इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं.

भगवान कृष्ण का बाल श्रृंगार कर उनके लिए डोल तैयार किये जाते हैं.

जन्माष्टमी व्रत के फल की प्राप्ति हेतु इस ग्यारस के व्रत को करना विशेष माना जाता हैं.

इस व्रत में स्वच्छता का अधिक ध्यान रखा जाता हैं.

डोल ग्यारस सेलिब्रेशन

डोल ग्यारस मुख्य रूप से मध्यप्रदेश एवं उत्तरी भारत में मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों से भगवान् कृष्ण की मूर्ती को डोले में सजाकर नगर भ्रमण एवं नौका बिहार के लिए ले जाया जाता है.

कहते है बाल रूप में कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नन्द के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे.

डोला को बहुत सुंदर भव्य रूप में झांकी की तरह सजाया जाता है. फिर एक बड़े जुलुस के साथ पुरे नगर में ढोल नगाड़ों, नाच-गानों के साथ इनकी यात्रा निकलती है. पुरे नगर में प्रसाद बांटा जाता है.

जिस स्थान में पवित्र नदियाँ जैसे नर्मदा, गंगा, यमुना आदि रहती है, वहां कृष्ण जी को नाव में बैठाकर घुमाया जाता है.

नाव को एक झांकी के रूप में सजाते है और फिर ये झांकी उस जगह के हर घाट में जा जाकर कृष्ण के दर्शन देती है और प्रसाद बांटती है. कृष्ण की इस मनोरम दृश्य को देखने के लिए घाट घाट में लोगों का जमावड़ा लगा रहता है.

मध्यप्रदेश के गाँव में इस त्यौहार की बहुत धूम रहती है, घाटों के पास मेले लगाये जाते है, जिसे देखने दूर दूर से लोग जाते है. पूरी नदी में नाव की भीड़ रहती है, सभी लोग नौका बिहार का आनंद लेते है.

3-4 घंटे की झांकी के बाद, कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया जाता है.

डोल ग्यारस या परिवर्तनी एकादशी या वामन जयंती के सन्देश

क्या है डोल ग्यारस वामन-एकादशी हैं महा व्रत विधान

मनुष्य जीवन का करे उत्थान

बदली करवट किया कल्याण

परिवर्तनी का पाया नाम

हैं ऐसा डोल ग्यारस का पूरा ज्ञान

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माता यशोदा के घर आये नन्द लाल

गोकुल में बजे जश्न के ढोल धमाल

ऐसे पावन दिन का हम सब करते इंतजार

सुन्दर सजते डोल झाँकियाँ हैं हर बार

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वामन का धर कर रूप किया बलि का उत्थान

करवट बदल कर बदला पृथ्वी का ढाल

बाल रूप में किया यशोदा माँ का उत्थान

ऐसे भगवान विष्णु को शत- शत प्रणाम

क्या है डोल ग्यारस वामन-इस प्रकार भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता हैं. पापो से मुक्ति एवम सुखद अंत के लिए मनुष्य एकदशी व्रत का पालन करते हैं. एकदशी के दिन ग्रहों की दशायें बदली हैं जिस कारण मनुष्य में अव्यवहारिक परिवर्तन होते हैं इस तरह के परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ही हिन्दू धर्म में एकादशी का महत्व निकलता हैं.सभी पूजा एवं व्रत के पीछे वैज्ञानिक कारण छिपे होते हैं, जिन्हें जानकर अगर उनका पालन करे तो धार्मिक आस्था में वृद्धि होती हैं.

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