चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य, चाबहार Port को भारत सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण Project माना जाता है, लेकिन यह भी सच है कि चाबहार बंदरगाह को Develop करने से न केवल भारत को बल्कि ईरान और अफगानिस्तान को भी फायदा होता है। जहां भारत को इस बंदरगाह के विकास से महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है, वहीं यह देश के लिए भू-राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी रखता है। चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य, चाबहार बंदरगाह के विकास का उद्देश्य भारत के लिए एक alternate व्यापार मार्ग बनाना है जो पाकिस्तान को दरकिनार कर दे। यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, जिससे व्यापार और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के नए अवसर खुलते हैं। इसके अतिरिक्त, चाबहार बंदरगाह भारत को क्षेत्र में रणनीतिक लाभ प्रदान करता है, जिससे समुद्री मामलों में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित होती है।

हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चाबहार बंदरगाह का विकास पूरी तरह से भारत के हितों से प्रेरित नहीं है। इस बंदरगाह से ईरान और अफगानिस्तान को भी काफी फायदा होगा। यह ईरान को अपने समुद्री व्यापार को बढ़ाने और एक क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। अफगानिस्तान के लिए, चाबहार बंदरगाह उसकी ज़मीन से घिरी अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण आउटलेट प्रदान करता है, जिससे व्यापार के लिए पड़ोसी देशों पर उसकी निर्भरता कम हो जाती है।

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चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य, चाबहार बंदरगाह एक ऐसी परियोजना है जो भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए आर्थिक लाभ रखती है। जहां भारत को महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्राप्त होता है, वहीं यह बंदरगाह देश के लिए भू-राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी रखता है। इसके अलावा, इसका विकास क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार में योगदान देता है, जिससे सभी शामिल देशों को लाभ होता है।

चाबहार बंदरगाह का इतिहास

चाबहार बंदरगाह, जिसे शाहिद बेहश्ती बंदरगाह के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिणपूर्वी ईरान में सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। यह होर्मुज जलडमरूमध्य के पास ओमान की खाड़ी के तट पर स्थित होने के कारण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व रखता है।

चाबहार बंदरगाह का इतिहास कई सदियों पुराना है। यह प्राचीन काल से एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र और हिंद महासागर का प्रवेश द्वार रहा है। बंदरगाह की स्थिति ने इसे फारस की खाड़ी, भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री केंद्र बना दिया। फारसियों, यूनानियों, अरबों और बाद में यूरोपीय लोगों सहित विभिन्न सभ्यताओं के व्यापारियों ने वाणिज्य और माल के आदान-प्रदान के लिए चाबहार बंदरगाह का उपयोग किया।

मध्ययुगीन काल के दौरान, चाबहार बंदरगाह अब्बासिड्स, सेल्जुक और मंगोल जैसे विभिन्न साम्राज्यों के प्रभाव में फलता-फूलता रहा। इसने समुद्री रेशम मार्ग में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य किया, जिससे पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क को सुविधाजनक बनाया गया।

19वीं सदी में चाबहार बंदरगाह ईरान के क़ज़ार राजवंश के नियंत्रण में आ गया। हालाँकि, स्टीमशिप के आगमन और स्वेज़ नहर के खुलने के साथ, वैकल्पिक व्यापार मार्गों के उभरने से बंदरगाह का महत्व धीरे-धीरे कम हो गया।

हाल के इतिहास में, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार की क्षमता के कारण चाबहार बंदरगाह ने फिर से रणनीतिक महत्व हासिल कर लिया है। 2003 में, ईरान ने बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने के लिए भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान को बायपास करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय पारगमन और परिवहन गलियारा बनाना था। यह परियोजना, जिसे चाबहार बंदरगाह विकास योजना के नाम से जाना जाता है, समुद्री व्यापार को बढ़ाने, ईरान को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और उससे आगे तक जोड़ने की परिकल्पना करती है। चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार बंदरगाह के विकास को 2016 में और गति मिली जब ईरान, भारत और अफगानिस्तान ने पारगमन और व्यापार गलियारा स्थापित करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। तब से बंदरगाह का विस्तार और आधुनिकीकरण चल रहा है, इसकी दक्षता और क्षमता में सुधार के लिए कंटेनर टर्मिनल और एक रेलवे लाइन सहित नई सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है।

चाबहार बंदरगाह में एक प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र बनने की क्षमता है, जो व्यापार और आर्थिक एकीकरण के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से भूमि से घिरे अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए माल के परिवहन को सुविधाजनक बनाना है, जिससे पड़ोसी पाकिस्तान पर उनकी निर्भरता कम हो सके। इसके अलावा, यह बंदरगाह ईरान को क्षेत्र में रणनीतिक समुद्री आधार प्रदान करता है और भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है।

चाबहार बंदरगाह कहाँ स्थित हैं ? (Location of Chabahar Port)

चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हैं. ओमान की खाड़ी में स्थित यह बंदरगाह  ईरान  के दक्षिणी समुद्र तट को  भारत के पश्चिमी समुद्री तट से जोड़ता है. चाबहार बंदरगाह ईरान के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री किनारे पर बना हैं. इस बंदरगाह को ईरान द्वारा व्यापार मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया हैं. यह पाकिस्तान के गवादर बंदरगाह के पश्चिम की तरफ मात्र 72 किलोमीटर की दूरी पर हैं. चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार परियोजना, जिसे चाबहार बंदरगाह परियोजना के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य दक्षिणपूर्वी ईरान में चाबहार बंदरगाह का विकास और विस्तार करना है। इस परियोजना में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच सहयोग शामिल है, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए एक पारगमन और व्यापार गलियारा स्थापित करना है।

चाबहार परियोजना (Chabahar Project)

चाबहार परियोजना सभी भाग लेने वाले देशों के लिए अत्यधिक रणनीतिक और आर्थिक महत्व रखती है। चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य, यहां परियोजना के प्रमुख पहलू और उद्देश्य हैं:

चाबहार बंदरगाह का विकास: परियोजना का प्राथमिक फोकस चाबहार बंदरगाह का विकास, आधुनिकीकरण और विस्तार है। इसमें कंटेनर टर्मिनल, कार्गो हैंडलिंग सुविधाएं और सड़क और रेल कनेक्टिविटी जैसे नए बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है।

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: इस परियोजना का लक्ष्य चाबहार बंदरगाह को विभिन्न परिवहन नेटवर्क से जोड़कर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाना है। इससे माल की आवाजाही में सुविधा होगी और जमीन से घिरे अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों को अरब सागर और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच मिलेगी।

व्यापार और आर्थिक एकीकरण: चाबहार परियोजना भाग लेने वाले देशों के बीच व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना चाहती है। चाबहार बंदरगाह का विकास एक नया व्यापार मार्ग प्रदान करता है जो पारंपरिक मार्गों पर निर्भरता को कम करता है और माल के प्रवाह को सुविधाजनक बनाता है, जिससे आर्थिक अवसर बढ़ते हैं।

अफगानिस्तान की व्यापार जीवन रेखा: चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है, जो इसे पाकिस्तान को बायपास करने और इसके आयात और निर्यात के लिए एक सीधा और विश्वसनीय मार्ग प्रदान करने में सक्षम बनाता है। इससे पाकिस्तानी बंदरगाहों और व्यापार बुनियादी ढांचे पर अफगानिस्तान की निर्भरता कम हो जाती है।

भू-राजनीतिक महत्व: यह परियोजना भारत के लिए भू-राजनीतिक महत्व रखती है क्योंकि यह एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करती है जो पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच सुनिश्चित करती है। यह व्यापार केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ावा देकर ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव को भी मजबूत करता है और भारत के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बढ़ाता है।

क्षेत्रीय स्थिरता: चाबहार परियोजना का उद्देश्य आर्थिक सहयोग और विकास को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान करना है। यह भाग लेने वाले देशों के बीच बेहतर संबंधों और सहयोग का अवसर प्रदान करता है, जिससे पूरे क्षेत्र को लाभ होता है।

कुल मिलाकर, चाबहार परियोजना एक positive प्रयास है जिसका उद्देश्य चाबहार बंदरगाह को विकसित करना और एक पारगमन और व्यापार गलियारा स्थापित करना है। यह भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए रणनीतिक महत्व रखता है, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देता है, जबकि पाकिस्तान को बायपास करने वाला एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

चाबहार उदघाटन (Chabahar Inauguration)

चाबहार के “शाहिद बहिश्ती बंदरगाह” के प्रथम चरण के उद्घाटन ईरान के प्रधानमंत्री रोहानी ने किया था, जिसमें भारत के तत्कालीन शिपिंग राज्य मंत्री पोन राधकृष्णन ने भारत का प्रतिनिधित्व किया. भारत-ईरान-अफगानिस्तान की चाबहार पर त्रिपक्षीय वार्ता भी इस उद्घाटन समारोह के साथ अनौपचारिक रूप से सम्पन्न हुई, जिसमें 3नों देशों ने कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर जिसमें पोर्ट, रोड और रेल नेटवर्क समग्र विकास पर बात की.

रौहानी ने इस उद्घाटन समारोह में कहा कि यह रास्ता जमीन, समुद्र और हवा तीनों माध्यम से जुड़ा होना चाहिए. इस उद्घाटन समारोह में ही यह बात भी सुनिश्चित की गयी, कि चाबहार पोर्ट के माध्यम से 1,10,000 टन गेहूं  भारत से अफगानिस्तान भेजे जायेंगे.

भारत कई वर्षों से अफगानिस्तान के अपने व्यापारिक और कुटनीतिक रिश्ते मजबूत करना चाहता हैं और चाबहार बंदरगाह इस दिशा में भारत को काबुल तक पहुँचने में मदद करेगा. और यह बंदरगाह इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि पाकिस्तान ने भारत को वाघा बॉर्डर को पार कर पकिस्तान के थल मार्ग से होते हुए अफ्गानिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी. ये बात भी दोनों देशों के नेताओं ने सांकेतिक भाषा में स्वीकार की थी.

23 मई 2016 को  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे पर  भारत, ईरान और अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए  चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य

कैसे बनेगा ये भारत के लिए व्यापरिक गलियारा (Corridor of India )

  1. चाबहार की भौगोलिक स्थिति भी भारत के लिए इसमें निवेश करने का मुख्य कारण हैं. भारत द्वारा 2009 में ईरान-अफगानिस्तान के मध्य प्रस्तावित रोड नेटवर्क मिलक-ज़रांज-दिलराम का एक हिस्स्सा बनवाया गया था, जिसका उपयोग अफगानिस्तान के गारलैंड हाईवे पर व्यापारिक कार्यों के लिए किया जाएगा.
  2. भारत ने इस पर अब तक पश्चिमी अफगानिस्तान के देलारम से लेकर ईरान-अफगानिस्तान के बॉर्डर पर स्थित ज़रांज को चाबहार बंदरगाह से जोड़ने के लिए 218 किलोमीटर (140 मील) लम्बी सडक बनाने पर लगभग 100 मिलियन डॉलर खर्च कर दिए हैं. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर इस नेटवर्क की  सहायता से अफगानिस्तान के 4 मुख्य शहरों हेरत,कंधार,काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुचना आसान होगा.
  3. भारत, ईरान में ज़ाहेदान की 1.6 बिलियन डॉलर रेल लाइन बनाने में भी मदद करेगा जो कि अंतत: उत्तर के मशद से जुड़ेगी और तुर्कमेनिस्तान और दक्षिण में बफ्क-मशद रूट से जोड़ेगी.
  4. इसके अलावा मध्य एशिया तक भी भारत की पहुँच आसान हो जायेगी और इस समुन्द्र-थल मार्ग के नेटवर्क से ट्रांसपोर्ट कॉस्ट कम होने के साथ भारत से मध्य एशिया तक पहुँचने वाला समय भी कम हो जाएगा.
  5. भारत अफगानिस्तान के बामियन प्रांत के खनिज सम्पन्न हजिगाक क्षेत्र को चाबहार बन्दरगाह से जोड़ने के लिए 900 किलोमीटर की रेल लाइन बनाने पर भी विचार कर रहा हैं. एक अध्ययन के अनुसार इस प्रस्तावित रेल प्रोजेक्ट का बजट ईरान और अफगानिस्तान के लिए 5 बिलियन डॉलर तक हो सकता हैं जिसमें भारत इन दोनों देशों की बहुत बड़ी आर्थिक मदद कर सकता हैं. इस रेल नेटवर्क से भारत मध्य एशिया के अन्य राज्य कजाकिस्तान,उजेबिक्स्तान,तजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान तक अपनी पहुँच बना सकेगा.
  6. अब तक भारतीय कंपनियों के लिए इन क्षेत्रों में रेल मार्ग उपलब्ध ना होना बहुत बड़ी समस्या रही हैं. इस क्षेत्र में 1 ट्रिलियन डालर तक के खनिज उपलब्ध है जिसके अधिकार भारत की स्टील ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (SAIL) द्वारा खरीद लिए गए हैं. इस जुडाव के कारण SAIL के अंतर्गत आने वाले भारती स्टील स्टील कंपनी के 10.8 बिलियन डालर की आयरन और स्टील प्रोजेक्ट पूरे हो सकेंगे.

चाबहार बंदरगाह का भारत के लिए महत्व  ( Importance of Chabahar port for India in hindi)

चाइना अपने राष्ट्रपति जी जिनपिंग के नेतृत्व में आऊन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(BRI) को वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट के अंतर्गत आक्रामक रूप से बढ़ा रहा हैं और भारत का यह चाबहार बंदरगाह इसी का जवाब हैं.  इस प्रोजेक्ट की मदद से चीन सडक के माध्यम से रसिया,अफगानिस्तान,तुर्क, इटली केन्या और बांग्लादेश से होता हुआ पूरे भारत का घेराव कर लेगा. लेकिन भारत के पास अफगानिस्तान तक के लिए भी सडक का माध्यम नहीं होगा.

ऐसे में चाबहार बंदरगाह जो कि भारत को अफगानिस्तान के सडक मार्ग से जोड़ेगा,और भविष्य में भारत इसके आगे भी अन्य देशों तक अपनी पहुँच बना सकेगा. इस तरह भारत की अफगानिस्तान तक सडक के माध्यम से पहुँचने के लिए  पाकिस्तान पर निर्भरता भी ख़त्म हो जाएगी.

चाबहार बन्दरगाह vs ग्वादर बन्दरगाह (Chabahar Port v/s Gvadar port)

चाबहार बंदरगाह और ग्वादर बंदरगाह इस क्षेत्र में स्थित दो महत्वपूर्ण बंदरगाह हैं, प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएं और रणनीतिक निहितार्थ हैं। यहां चाबहार बंदरगाह और ग्वादर बंदरगाह के बीच तुलना है:

स्थान: चाबहार बंदरगाह दक्षिणपूर्वी ईरान में स्थित है, जबकि ग्वादर बंदरगाह दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में, ईरानी सीमा और होर्मुज जलडमरूमध्य के पास स्थित है। चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी पर स्थित है, जबकि ग्वादर बंदरगाह अरब सागर पर स्थित है।

स्वामित्व और संचालन: चाबहार बंदरगाह मुख्य रूप से ईरान के सहयोग से भारत द्वारा विकसित और संचालित किया गया है, जिसका लक्ष्य अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग बनाना है। दूसरी ओर, ग्वादर बंदरगाह मुख्य रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पहल के एक हिस्से के रूप में चीन द्वारा विकसित और संचालित है।

उद्देश्य: चाबहार बंदरगाह क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और आर्थिक एकीकरण को सुविधाजनक बनाने पर केंद्रित है। यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है जबकि चारों ओर से जमीन से घिरे अफगानिस्तान को एक विश्वसनीय व्यापार जीवनरेखा प्रदान करता है। दूसरी ओर, ग्वादर बंदरगाह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक प्रमुख घटक है और अरब सागर में चीन के लिए एक रणनीतिक चौकी के रूप में कार्य करता है, जो उसे हिंद महासागर तक पहुंच प्रदान करता है।

भू-राजनीतिक निहितार्थ: चाबहार बंदरगाह भारत के लिए भू-राजनीतिक महत्व रखता है क्योंकि यह भारत को पाकिस्तान को बायपास करने और क्षेत्र में अपनी उपस्थिति स्थापित करने की अनुमति देता है। यह ईरान के प्रभाव को बढ़ाता है और भारत-ईरान संबंधों को मजबूत करता है। चीन के नियंत्रण में ग्वादर बंदरगाह, क्षेत्र में चीन के रणनीतिक पदचिह्न का विस्तार करता है और उसे होर्मुज जलडमरूमध्य के करीब अरब सागर में रणनीतिक लाभ प्रदान करता है।

व्यापार मार्ग: चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए, विशेष रूप से भारत और अफगानिस्तान के लिए व्यापार के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। यह सड़क और रेल नेटवर्क के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया को कनेक्टिविटी प्रदान करता है। ग्वादर बंदरगाह का लक्ष्य चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में एक प्रमुख केंद्र के रूप में काम करना है, जो चीन के पश्चिमी क्षेत्रों को अरब सागर से जोड़ता है और चीन के लिए समुद्री व्यापार मार्ग प्रदान करता है।

क्षेत्रीय एकीकरण: चाबहार बंदरगाह, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, भारत, ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों सहित भाग लेने वाले देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के ढांचे के भीतर ग्वादर बंदरगाह का उद्देश्य चीन और पाकिस्तान के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करना है।

चाबहार बंदरगाह का इतिहास व चाबहार परियोजना का भविष्य – जबकि चाबहार बंदरगाह और ग्वादर बंदरगाह दोनों का रणनीतिक महत्व है और उनका उद्देश्य व्यापार और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाना है, उनके स्वामित्व, उद्देश्य और भू-राजनीतिक निहितार्थ अलग-अलग हैं। चाबहार बंदरगाह भारत की क्षेत्रीय उपस्थिति पर जोर देता है और एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जबकि ग्वादर बंदरगाह क्षेत्र में चीन के हितों की सेवा करता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक संबंधों को मजबूत करता है।

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