कैसे हुआ उनके ऊपर अत्यचार कश्मीरी पंडित और इनका इतिहास Kashmiri Pandits  in Hindi

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको कश्मीरी पंडित के बारे में बताने जा रहा हु जम्मू कश्मीर राज्य के इतिहास के बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है, इस राज्य को हमेशा से एक आतंक के राज्य के तौर पर ही देखा जाता है. इस राज्य की राजधानी यानी श्रीनगर, लंबे समय से आतंकवाद का शिकार रही है और धीरे –धीरे ये आतंक इस राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया है और यह आतंकवाद देश के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया है. इस समस्या से लड़ने के लिए हर साल 21 मई को आतंक विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है. वहीं कश्मीर घाटी में फैले इस आतंक का सबसे बुरा असर इस राज्य के पंडितों पर पड़ा है और आतंकवादियों के चलते इस राज्य के पंडितों को ये राज्य छोड़ना पड़ा था. जिसके कारण आज इस समय, घाटी में कश्मीरी पंडितों का नामों निशान एकदम खत्म हो चुका है. कश्मीरी पंडितों के साथ हुए व्यवहार को बॉलीवुड की हालही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ में दर्शाया गया है. आप इस लेख में इनके इतिहास और इनके ऊपर बनी फिल्म की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

कश्मीरी पंडितों और कश्मीर का इतिहास

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –आजादी से पहले कश्मीर एक बेहद ही सुंदर जगह होने के साथ-साथ, एक शांतिपूर्ण जगह भी हुआ करती थी और यहां की अधिकतर आबादी कश्मीरी पंडितों की थी. इस जगह पर दूसरे देशों के कई मुस्लिम राजाओं ने आक्रमण भी किया था और इस जगह पर राज्य भी किया था. और इस दौरान भी यहां की शांति बरकरार रही थी.

कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों की उस समय अलग-अलग श्रेणियां हुआ करती थी और इन श्रेणियों के आधार पर इन पंडितों के अपने अलग-अलग रीति, रिवाज और परंपराएं हुआ करती थी.

कश्मीरी पंडित दो तरह के होते थे, जिनमें से पहली श्रेणी वाले पंडित को बनमासी (Banmasi) कहा जाता था. इस श्रेणी में उन पंडित को गिना जाता था जो मुस्लिम राजाओं के शासन के दौरान घाटी को छोड़कर चले गए थे और बाद में वापस यहां पर आकर फिर से बस गए थे.

वही दूसरी श्रेणी के पंडित को मलमासी (Malmasi) कहा जाता था. इस श्रेणी में उन पंडितों को रखा गया था जिन्होंने लाख दिक्कतों के बाद भी घाटी को नहीं छोड़ा था. इसके अलावा जिन पंडितों ने इस घाटी में व्यवसाय करना शुरू कर दिया था, उन्हें बुहिर पंडित कहा जाता था. लेकिन आजादी के बाद इन पंडितों का नामों निशान इस जगह से खत्म होता गया और ये जन्नत आतंकवाद का शिकार हो गई.

कश्मीर पर था सिर्फ मुसलमानों का हक

आतंकी संगठन कश्मीर पर केवल मुस्लिम धर्म के लोगों का ही हक मानते थे, जिसके चलते यहां पर रहने वाले अन्य धर्म के लोगों के लिए, इस जन्नत को उन्होंने नरक बना दिया था.

आतंकवादी कश्मीरी पंडितों को उनका धर्म बदलने के लिए दबाव डालने लगे. आतंकवादी चाहते थे कि कश्मीर में रहने वाले सभी पंडित मुस्लिम धर्म को अपना लें. जिससे की इस घाटी में केवल मुसलमानों का ही हक रहे.

जिन कश्मीरी पंडितों ने आतंकवादियों की इस बात को मान लिया और अपना धर्म बदल लिया था, उन्हें शातिपूर्व यहां पर रहने दिया गया. लेकिन जिन पंडितों ने अपना धर्म नहीं बदला और इस घाटी को नहीं छोड़ने का फैसला किया था, उनपर काफी सारे अत्याचार किए गए. जिसके चलते कई कश्मीरी पंडितों ने साल 1990 में इस राज्य को छोड़ दिया और भारत के अन्य राज्यों में जाकर बस गए.

आखिर क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ

जब भारत आजाद हुआ था तो उस वक्त कश्मीर पर अधिकार को लेकर, भारत और पाकिस्तान के बीच एक जंग सी छिड़ गई थी. पाकिस्तान ने इसे (कश्मीर को) अपने देश का हिस्सा बनाने के लिए लाख कोशिशें की थी मगर वो ऐसा करने में नाकाम ही रहा. जिसके बाद पाकिस्तान ने आतंक के सहारे कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश की. जिसके कारण 1980 का दशक आते आते कश्मीर में भारतीय विरोधी प्रदर्शन काफी बढ़ने लगे.

1980 के दश्क में यहां पर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) और पाकिस्तान के समर्थक वाले कई इस्लामवादी समूह मजबूत होने लगे और इन समूह ने यहां की मुस्लिम जनता के बीच भारत के प्रति नफरत फैलाने का कार्य तेज कर दिया. जिसका असर यहां के कश्मीरी पंडितों पर पड़ने लगा.

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –साल 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने भारत से कश्मीर को आजाद करवाने के लिए अलगाववादी विद्रोह शुरू कर दिए. इस अलगाववादी विद्रोह के कारण साल 1989 में एक कश्मीरी हिंदू  जिनका नाम टिका लाल तपलू था, उनकी हत्या कर दी गई. टिका लाल एक जाने माने नेता थे, जिनका नाता भारतीय जनता पार्टी से था

इस हत्या के चलते कश्मीरी पंडित समुदाय के मन में खौफ पैदा होने लगा और इस समुदाय के लोग अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगे.

साल 1990 में कश्मीरी पंडितो को दी गई चेतावनी

4 जनवरी, 1990 को कश्मीर के उर्दू अखबारों में आतंक संगठन हिज्ब-उल-मुजाहिदीन द्वारा एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया था. इस विज्ञापन में हिज्ब-उल-मुजाहिदीन ने सभी पंडितों को, घाटी तुरंत छोड़ने के आदेश दिए थे. इस विज्ञापन में लिखा गया था कि, या तो कश्मीर को छोड़ दो या धर्म बदल लो, नहीं तो मरने के लिए तैयार हो जाओ. इस विज्ञापन को काफी समय तक अखबारों में प्रकाशित किया गया था, ताकि पंडितों के मन में खौफ बना रहे.

इस विज्ञापन के कुछ दिनों बाद इस आतंकी संगठन ने घाटी के कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था और पंडितों को मारने लगे थे.

जनवरी में की सरकारी कर्मचारी की हत्या

साल 1990 के जनवरी महीने में श्रीनगर में सरकारी कर्मचारियों की हत्या कर दी गई थी, जिनका नाम एम एल भान और बलदेव राज दत्ता था. ये दोनों कश्मीरी पंडित थे, इनकी दोनों की हत्या 15 जनवरी को की गई थी.

इन दोनों कर्मचारियों की हत्या के बाद से घाटी में तनाव और बढ़ गया और इनकी हत्या के चार दिन बाद यानी 19 तारीख को घाटी के हालात और खराब हो गए.

हर जगह लाउ स्पीकर के जरिए पंडितों को घाटी को छोड़ने के लिए कहा जाने लगा. इतना ही नहीं पंडितों के घरों के बाहर पोस्टर लगा दिए गए और उन्हें कश्मीर छोड़ने की धमकी दी गई.

कहा जाता है कि 19 जनवरी की रात को यहां पर रहने वाले मुस्लिम लोग सड़कों पर उतर आए थे और पंडितों को कश्मीर छोड़कर जाने को कहने लगे. जिसके बाद पंडितों ने सरकार से मदद मांगी, लेकिन इनकी मदद ना राज्य सरकार ने की और ना ही केंद्र सरकार ने.

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –वहीं इस दौरान यहां पर रहने वाले पंडित महिलाओं के साथ बलात्कार भी किए जाने लगे और छोटे-छोटे बच्चों को मारा भी जाने लगा. इन सब घटनों के चलते यहां के लोगों ने आखिरकार घाटी को छोड़ने का फैसला ले लिया.

जनवरी के महीने के अंत तक कश्मीर में रहने वाले लाखों पंडितों ने घाटी को छोड़ दिया और देश के अलग अलग हिस्सों में चले गए. कुछ पंडित जम्मू में जाकर बस गए तो कुछ पंडितों ने इस राज्य को ही छोड़ दिया.

सरकार रही नाकाम

जब कश्मीरी पंडितों के साथ ये अत्याचार हो रहे थे, तो उस वक्त केंद्र में वी. पी. सिंह की सरकार थी और राज्य में फारुख उबदूला की सरकार थी. लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों में से किसी ने भी कश्मीरी पंडितों की किसी भी तरह से मदद नहीं की.

कश्मीरी पंडितो की जनसंख्या

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 1990 तक कश्मीर में लगभग 1 लाख 70 हजार पंडित रहते थे. लेकिन कहा जाता है कि वास्तव में ये आकंड़ा काफी अधिक था. घाटी में करीब 3 लाख के आस पास कश्मीरी पड़ित रहा करते थे. वहीं इस वक्त घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या केवल 4000 तक रह गई है

कितने कश्मीरी पंडितों की गई जान

सरकार के आंकड़ों के अनुसार कश्मीर में साल 1990 में करीब 300 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई थी. लेकिन कश्मीरी पड़ितों पर जो किताबें लिखी गई हैं, उन किताबों के मुताबिक हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित मारे गए थे. औरतों के साथ बलात्कार किया गया था और उन्हें बुरी तरह से मारा गया था. मगर सरकार ने महज 300 पंडितों की मौत की पुष्टि की थी, जो कि गलत आकंड़ा था.

इस समय कश्मीर में पंडितों के हालात

इस वक्त कश्मीर में ना के समान कश्मीरी पंडितों बचे हुए हैं. लेकिन सरकार दोबारा से घाटी में इन्हें बसाने की कोशिश करने में लगी हुई है. साल 2008 में यूपीए सरकार ने इनको दोबारा से बसाने के लिए 1,168 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया था. जिसके बाद करीब 1000 की संख्या में कश्मीरी पंडित वापस से घाटी में आकर बसे हैं

कश्मीरी पंडित विवाद

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –जम्मू-कश्मीर के बडगाम में कश्मीरी पड़ित राहुल भट्ट की हत्या के बाद घाटी में विरोध प्रदर्शन काफी तेज हो गया है। इस समय लोग सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। इसके साथ ही अपना आक्रोश भी प्रकट कर रहे हैं। उन्होंने सरकार के सामने मांग रखी है कि, जब तक कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा नहीं दी जाएगी वो काम पर वापस नहीं आएगे। आपको बता दें कि, राहुल भट्ट की हत्या के बाद लोगों ने उनके शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन किया जब उप राज्यपाल के आने की खबर मिली तब भी उन्होंने उस शव को हटाने से इनकार कर दिया। लेकिन उप पुलिस महानिरीक्षक सुजीत के कहने पर वो शव को हटाने के लिए तैयार हो गए।

आपको बता दें कि, 12 मई 2022 को तहसीलदार ऑफिस में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने राहुल भट्ट पर गोलियां बरसाई। जिसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। जहां वहां पर इलाज के दौरान डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

 

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म 2022

हालही में 11 मार्च के दिन फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज़ हुई है. इस फिल्म के रिलीज़ होने के साथ ही इस फिल्म ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. हालही ये फिल्म अपनी रिलीज़ के पहले ही कई विवादों के चलते चर्चाओं में रही है. इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ सन 1990 में हुए अत्याचार की कहानी दर्शाई गई है. कोरोनाकाल के बाद कोई ब्लॉकबस्टर फिल्म आई है तो यदि है. इस फिल्म में आपको मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खैर, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार, चिन्मय मंडलेकर, पुनीत इस्सर एवं मृणाल कुलकर्णी आदि अभिनेताओं ने अभिनय किया है. इस फिल्म का निर्देशन विवेक अग्निहोत्री ने किया है, और सिनेमेटोग्राफी उदयसिंह मोहिते द्वारा की गई है. इसे अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स के प्रोडक्शन हाउस द्वारा बनाया गया है. यह फिल्म इस साल के गणतंत्र दिवस के दिन रिलीज़ होने वाली थी, किन्तु कोरोना के बढ़ते केस के चलते यह फिल्म की रिलीज़ डेट को आगे बढ़ाना पड़ा. किन्तु अब जाकर जब यह फिल्म रिलीज़ हुई है. तो यह फिल्म रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर रही है. फिल्म रिलीज़ के 4 दिन बाद भी सिनेमाघर हाउसफुल जा रहे हैं.

कश्मीरी पंडितों पर लिखी गई किताब

अत्यचार कश्मीरी पंडित इतिहास –कश्मीरी पंडितों के साथ जो साल 1990 में हुआ था, उस विषय पर कई सारी किताबें भी लिखी गई है और इन किताबों में इनके इतिहास और इन पर हुए अत्याचारों की जिक्र किया गया है. इन पंडितों पर लिखी गई कुछ किताबों के नाम इस प्रकार हैं,

‘माय फ्रोजेन टरबुलेन्स इन कश्मीर’ – ये किताब जगमोहन द्वारा लिखी गई है.  इस किताब में साल 1990 की घटनाओं का जिक्र किया गया है और बताया गया है कि किस तरह से आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को उनके घरों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.

‘कल्चर एंड पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर’– इस किताब में भी कश्मीरी पंडितों के बारे में बताया गया है. ये किताब पीएनके बामजई ने लिखा है और उन्होंने भी कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्यायों की जिक्र अपनी इस किताब में किया है.

“आवर  मून  हेज  ब्लड  क्लॉट्स” – ये किताब राहुल पंडिता ने लिखा है, जो कि खुद एक कश्मीरी पंडित है. इन्होंने अपनी इस किताब में अपने परिवार की कहानी के माध्यम से कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों की कहानी बताई है.

निष्कर्ष-

कश्मीरी पंडितों के साथ हमारे देश में काफी अन्याय हुए हैं और  सरकार अब इन पंडितों को वापस से इनका हक दिलवाने की कोशिशें करने में लगी हुई है. लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद भी इन पंडितों के साथ हुए अन्याय को भुलाया नहीं जा सकता है.

FAQ

Q : कश्मीरी पंडित कौन थे ?

Ans : कश्मीरी में रहने वाले हिंदुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता था.

Q : कश्मीरी पंडित के पलायन की घटना कब की है ?

Ans : सन 1990 की

Q : कश्मीरी पंडित के साथ क्या हुआ था ?

Ans : उनकी हत्या की जा रही थी, जिसके कारण उन्हें वहां से पलायन करना पड़ा था.

Q : कश्मीरी पंडितों पर क्या कोई फिल्म बनी है ?

Ans : जी हां कश्मीर फाइल्स नाम से फिल्म बनी है.

Q : कश्मीर फाइल्स फिल्म कब रिलीज़ हुई है ?

Ans : 11 मार्च

Q : कश्मीर फाइल्स फिल्म किस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आयेगी ?

Ans : इस फिल्म को प्रोड्यूस ज़ीस्टूडियो में किया गया है. इस फिल्म का कंट्रोल ज़ी 5 ओटीटी प्लेटफॉर्म के पास है.

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